यह एक प्यारी सी कहानी है, जो एक छोटे से गाँव की है, जहाँ एक बहुत ही गरीब परिवार रहता था। उस परिवार में केवल दो लोग थे: एक माँ और उसका बेटा। माँ का नाम था गीता और बेटे का नाम था राजू। गीता बहुत ही मेहनती और प्यार करने वाली माँ थी, और राजू एक समझदार और होशियार लड़का था।
शुरुआत
गीता और राजू का घर बहुत ही साधारण था। मिट्टी की दीवारें, छप्पर का छत, और बस एक ही कमरा। गीता गाँव में लोगों के कपड़े सिलती थी, ताकि वो अपने और अपने बेटे के लिए दो वक्त की रोटी कमा सके। गीता को सिलाई का काम आता था, लेकिन गाँव में बहुत कम लोग थे जो कपड़े सिलवाते थे। इसलिए कभी-कभी गीता को काम नहीं मिलता, और उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता।
लेकिन गीता ने कभी हार नहीं मानी। वो हमेशा भगवान का धन्यवाद करती और सोचती कि “भगवान एक दिन हमारा भी समय बदलेगा।”
माँ का सपना
गीता को एक ही सपना था, कि उसका बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। वो चाहती थी कि राजू अपनी ज़िंदगी में बहुत सफल हो, ताकि उसे इस गरीबी से बाहर निकलने का मौका मिले। गीता ने सोचा, “अगर राजू अच्छे से पढ़ाई करेगा, तो वो ज़रूर एक बड़ा आदमी बनेगा।”
गीता जानती थी कि पढ़ाई के लिए पैसे की ज़रूरत होगी, लेकिन उसके पास इतने पैसे नहीं थे। फिर भी, उसने ठान लिया था कि वो राजू को पढ़ाई ज़रूर करवाएगी। गीता ने अपने काम के साथ-साथ दूसरों के घरों में बर्तन धोने और झाड़ू-पोंछा करने का काम भी करना शुरू कर दिया, ताकि वो राजू की पढ़ाई का खर्च उठा सके।
राजू की पढ़ाई
राजू भी समझदार था। उसे पता था कि उसकी माँ उसके लिए कितनी मेहनत कर रही है। वो हर दिन स्कूल जाता और बहुत मेहनत से पढ़ाई करता। वो अपने टीचर्स से सब कुछ अच्छे से सीखता और घर आकर अपनी माँ को भी बताता कि उसने आज स्कूल में क्या-क्या सीखा।
राजू की माँ को उसकी मेहनत पर गर्व था। गीता ने उसे कभी भी खेलने या समय बर्बाद करने नहीं दिया। जब भी राजू का मन खेलने का करता, गीता उसे समझाती, “बेटा, अभी पढ़ाई पर ध्यान दो। जब तुम बड़े आदमी बन जाओगे, तब खूब खेलना।”
राजू को माँ की बात समझ में आ जाती और वो फिर से अपनी किताबों में लग जाता। उसकी मेहनत का फल भी मिलने लगा। राजू स्कूल में हमेशा अच्छे नंबर लाता और उसके टीचर भी उसकी तारीफ करते। वो सब कहते, “राजू एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा।”
मुश्किलें बढ़ती हैं
लेकिन वक्त कभी भी एक जैसा नहीं रहता। एक दिन गीता बीमार पड़ गई। उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो अच्छे डॉक्टर से अपना इलाज करवा सके। फिर भी, उसने हिम्मत नहीं हारी। गीता ने अपने बीमार शरीर के साथ भी काम किया, ताकि राजू की पढ़ाई न रुके।
राजू ने अपनी माँ को इस हालत में देखा तो उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने माँ से कहा, “माँ, अब मैं भी काम करूँगा। हम दोनों मिलकर पैसे कमाएँगे, फिर आपको काम नहीं करना पड़ेगा।”
लेकिन गीता ने उसे डांटते हुए कहा, “नहीं, बेटा! तुम्हारा काम सिर्फ पढ़ाई करना है। अगर तुम भी काम करने लगोगे, तो हमारी गरीबी कभी खत्म नहीं होगी। तुम अच्छे से पढ़ाई करो, ताकि एक दिन हम इस गरीबी से बाहर निकल सकें।”
राजू ने अपनी माँ की बात मानी और फिर से पढ़ाई में लग गया।
बोर्ड की परीक्षा
समय बीतता गया और राजू अब 12वीं कक्षा में पहुँच गया। ये वो समय था जब उसे बोर्ड की परीक्षा देनी थी। ये परीक्षा उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसका परिणाम उसके भविष्य को तय करने वाला था।
राजू ने दिन-रात एक करके पढ़ाई की। उसकी माँ ने भी अपनी बीमारी की परवाह किए बिना उसे हर तरह से सहयोग किया। वो खुद भूखी रह जाती, लेकिन राजू को हमेशा अच्छा खाना देती ताकि वो स्वस्थ रहे और अच्छी तरह से पढ़ाई कर सके।
परीक्षा का परिणाम
आखिरकार, परीक्षा का दिन आ गया। राजू ने परीक्षा दी और अब परिणाम का इंतजार करने लगा। वो बहुत घबराया हुआ था, लेकिन उसकी माँ ने उसे हिम्मत दी और कहा, “तुमने जो मेहनत की है, उसका फल जरूर मिलेगा।”
जब परिणाम आया, तो राजू ने पूरे जिले में सबसे अच्छे नंबर लाए। उसकी माँ की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उसे ऐसा लगा जैसे उसकी सारी मेहनत का फल उसे मिल गया हो।
IPS बनने का सपना
अब राजू का सपना था कि वो एक IPS (इंडियन पुलिस सर्विस) अधिकारी बने। उसने अपनी माँ से कहा, “माँ, मैं IPS बनकर हमारे देश की सेवा करना चाहता हूँ।”
गीता ने उसके इस सपने को पूरा करने के लिए अपनी सारी जमा-पूँजी लगा दी। उसने और भी ज्यादा काम करना शुरू कर दिया ताकि राजू को किसी भी चीज़ की कमी न हो। राजू ने भी पूरी लगन और मेहनत से पढ़ाई की।
कठिनाईयों से पार
IPS की परीक्षा बहुत कठिन होती है। इसके लिए बहुत मेहनत और धैर्य की जरूरत होती है। राजू ने दिन-रात मेहनत की, लेकिन फिर भी उसकी पहली कोशिश में सफलता नहीं मिली। वो बहुत निराश हो गया और सोचने लगा कि शायद वो कभी IPS नहीं बन पाएगा।
लेकिन उसकी माँ ने उसे हिम्मत दिलाई। गीता ने कहा, “बेटा, हार मानने वाले कभी सफल नहीं होते। कोशिश करते रहो, भगवान तुम्हारी मेहनत जरूर रंग लाएंगे।”
राजू ने अपनी माँ की बात मानी और फिर से तैयारी शुरू कर दी। उसने अपनी गलतियों से सीखा और अपनी पढ़ाई में और ज्यादा मेहनत करने लगा।
सफलता का दिन
कई महीनों की मेहनत के बाद, आखिरकार वो दिन भी आ गया जब राजू ने IPS की परीक्षा पास कर ली। उसकी माँ की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत हासिल कर ली हो।
जब राजू का चयन IPS के लिए हुआ, तो पूरे गाँव में खुशियों की लहर दौड़ गई। हर कोई गीता और राजू की तारीफ कर रहा था। लोगों ने कहा, “गीता ने अपने बेटे को मेहनत और समर्पण से यहाँ तक पहुंचाया है।”
नई जिंदगी की शुरुआत
अब राजू एक IPS अधिकारी बन चुका था। उसने अपने पहले ही महीने की तनख्वाह से अपनी माँ के लिए एक अच्छा घर बनवाया। वो घर अब मिट्टी की दीवारों और छप्पर के छत वाला नहीं था। अब उसमें पक्की दीवारें और सुंदर छत थी।
राजू ने अपनी माँ को हर वो सुख दिया जो वो अपने जीवन में कभी नहीं पा सकी थी। गीता अब बहुत खुश थी। उसे अपने बेटे पर गर्व था।
अंत में
इस कहानी से हमें ये सिखने को मिलता है कि अगर हम सच्चे मन से मेहनत करें और कभी हार न मानें, तो हम अपने जीवन में हर मुश्किल को पार कर सकते हैं। गीता और राजू की तरह, अगर हम भी धैर्य और मेहनत से काम करें, तो हमारी सारी इच्छाएँ पूरी हो सकती हैं।
गीता और राजू की इस कहानी ने साबित कर दिया कि माँ की दुआओं और बेटे की मेहनत के आगे हर कठिनाई हार मान लेती है।
और इस तरह, गीता और राजू की जिंदगी खुशहाल हो गई। अब वो दोनों एक बड़े और अच्छे घर में रहते थे, और गाँव के सभी लोग उन्हें सम्मान की नजर से देखते थे।
यही थी गीता और राजू की कहानी, जो हमें ये सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद, अगर हम मेहनत और धैर्य के साथ आगे बढ़ते रहें, तो हम अपनी मंजिल जरूर पा सकते हैं।